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नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये तिरे होंट ये रुख़्सार ये ख़ामोश नज़र
जैसे मंदर में सजे बैठे हों पत्थर के सनम
सादिक़ा फ़ातिमी
नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सब से पहले इश्क़ में उंगली ही पकड़ी जाए है
रफ़्ता-रफ़्ता फिर कहीं पहुँचे का नंबर आए है
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
इंजिला हमेश
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
हवा में उड़ता है काजल फ़ज़ा है हुज़्न से बोझल
हर एक कुंज की हलचल कोहर में डूब चली है