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नज़्म
रहेगा तुंद-ख़ू सूरज जहाँ पर हुक्मराँ कब तक
रहेंगे ख़ाक के ज़र्रे फ़ज़ा में पुर-फ़िशाँ कब तक
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
चराग़-ए-इल्म रौशन है हक़ीक़त की हवाओं पर
हुकूमत कर रहा है एक गोशे से फ़ज़ाओं पर
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है