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नज़्म
किसी तन्नूर के हैज़म की ख़ाकिस्तर ही बनना था
उसे शोला-ज़दा बूदश का इक बिस्तर ही बनना था
जौन एलिया
नज़्म
काँटे भी राह में हैं फूलों की अंजुमन भी
तुम फ़ख़्र-ए-क़ौम बनना और नाज़िश-ए-वतन भी
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
जो वाक़िफ़ नहीं तेरे दर्द-ए-निहाँ से
इसे भी तो ज़िल्लत की पाबंदगी के लिए आल-ए-कार बनना पड़ेगा
नून मीम राशिद
नज़्म
न जाए दिया मुझे इस नरक से बाहर न बनने दी कोई पहचान
उन के दबाव में ही तो मुझे खोना पड़ा मेरा ईमान
अंकिता गर्ग
नज़्म
ऐसा न हो मर्द और औरत में रहे बाक़ी न फ़र्क़
ता'लीम पा कर आदमी बनना तुम्हें ज़ेबा नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
शाह की कुर्सी में ढलने से कहीं बेहतर है
किसी फ़ुटपाठ के होटल का वो टूटा हुआ तख़्ता बनना