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नज़्म
दूर मग़रिब में है मशरिक़ की फ़ज़ा में तो नहीं
तुम को मग़रिब के बखेड़ों से भला क्या लेना?
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन