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नज़्म
उन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई बरनाई भी
माओं के जवाँ बेटे भी गए बहनों के चहेते भाई भी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो ख़ुश हैं वो ख़ुशी में काटे हैं रात सारी
जो ग़म में हैं उन्हों पर गुज़रे है रात भारी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
और उस पे भाई बोल उठा फ़ुज़ूल है ये गुफ़्तुगू फ़ुज़ूल है
निगाह देखती है ताक़ में रखी हैं चंद बोतलें