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नज़्म
एक रंगीन ओ हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी
जन्नत-ए-शौक़ थी बेगाना-ए-आफ़ात-ए-सुमूम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उसे अपना बनाने की धुन में हुआ आप ही आप से बेगाना
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हवस बाला-ए-मिम्बर है तुझे रंगीं-बयानी की
नसीहत भी तिरी सूरत है इक अफ़्साना-ख़्वानी की
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो सब इक बर्फ़ानी भाप की चमकीली और चक्कर खाती गोलाई थे
सो मेरे ख़्वाबों की रातें जलती और दहकती रातें
जौन एलिया
नज़्म
आह शूदर के लिए हिन्दोस्ताँ ग़म-ख़ाना है
दर्द-ए-इंसानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है