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नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरे तख़्ईल के बाज़ू भी उस को छू नहीं सकते
मुझे हैरान कर देती हैं नुक्ता-दानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरी तख़्ईल को क्या रंग अता करते हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे आरिज़ तिरे होंट
हिमायत अली शाएर
नज़्म
मेरी परवीन-ए-तख़य्युल, मिरी नसरीन-ए-निगाह
मैं ने तक़्दीस के फूलों से सजाया है तुझे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
मेरी तख़्ईल में है एक जहान-ए-बेदार
दस्तरस में मिरी नज़्ज़ारा-ए-गुल-हा-ए-चमन
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
इक नई दुनिया की ख़िल्क़त है मिरी तख़्ईल में
जो मुआविन हो सके इंसान की तकमील में
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
जैसे हो नींद के रस्ते में कोई ख़्वाब-महल
जैसे फ़नकार के तख़्ईल में इक नफ़्स हसीं
मसूद मैकश मुरादाबादी
नज़्म
जिस के हर नक़्श में तख़्ईल के हर पैकर में
मुस्कुराती है बड़े नाज़ से रूह-ए-आलाम