aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "جہد_مسلسل"
मैं ने भी एक जोहद-ए-मुसलसल में काट दीवो उम्र थी जो फूल से अरमाँ लिए हुए
अश्क पत्थर की तरह जम से गए हैं मेरेज़िंदगी अर्सा-गह-ए-जोहद-ए-मुसलसल ही सही
चराग़-ए-उम्र बुझाना तो ख़ैर मुमकिन हैचराग़-ए-जेहद मुसलसल न सर्द होगा कभी
ये रात जोहद-ए-मुसलसल की एक रात सहीतबाहियों को लिए बार बार गुज़रेगी
देख के तेरी जेहद-ए-मुसलसलछट गए ख़ुद ही दुख के बादल
रा'नाई से हम-आग़ोश करती हैशबाना रोज़ की जेहद-ए-मुसलसल से
जज़्बा-ए-मज़हब सियासत का ख़रोशइल्म की जेहद-ए-मुसलसल फ़न का जोश
ये तिरी जेहद-ए-मुसलसल ये तिरा अज़्म-ए-समीमशम्अ तूफ़ान-ए-हवादिस में जला दी तू ने
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता हैदिसम्बर बीत जाने से
वो ख़्वाब झांसी की रानी को जिस ने चौंकायातिरा जिहाद-ए-मुसलसल उसी की है ता'बीर
इसी लिए मिरे दिल में अलम भी बाक़ी हैतिरी जिहाद-ए-मुसलसल सी ज़िंदगी की किताब
ख़िरद बाख्ता होमगर मेरे पंजे ज़माम-ए-सितम-हा-ए-जाँ मुसलसल गड़े हैं
समुंदर जो फैला है हर चार-जानिब उफ़ुक़ से उफ़ुक़ तकसमुंदर जो है आईना-ए-दार-ए-हस्ती जिहाद-ए-मुसलसल कशाकश
तेज़ बे-तरतीब धड़कन और नफ़्स फूला हुआज़र्द चेहरा और पसीने से बदन भीगा हुआ
कई सर-ज़मीनें सदा दे रही हैं कि आओकई शहर मेरे तआक़ुब में हैं चीख़ते हैं न जाओ
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता हैकिसी की चाहतों का रंग हर धड़कन पे तारी हो
बहुत दूर से एक आवाज़ आईमैं, इक ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता हूँ, कोई मुझे गुदगुदाए
मैं अपने बंद कमरे में पड़ा हूँऔर इक दीवार पर नज़रें जमाए
कितने दिन में आए हो साथीमेरे सोते भाग जगाने
मैं कि दो रोज़ का मेहमान तिरे शहर में थाअब चला हूँ तो कोई फ़ैसला कर भी न सका
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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