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नज़्म
चादरें माल-ए-ग़नीमत में जो अब के आईं
सेहन-ए-मस्जिद में वो तक़्सीम हुईं सब के हुज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
सरमद सहबाई
नज़्म
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
پھر بھي اے ماہ مبيں! ميں اور ہوں تو اور ہے
درد جس پہلو ميں اٹھتا ہو وہ پہلو اور ہے
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
देखो हम कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
कभी ग़नीम-ए-जौर-ओ-सितम के हाथों खाई ऐसी मात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द