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नज़्म
मोहब्बत अपनी यक-तौरी में दुश्मन है मोहब्बत की
सुख़न माल-ए-मोहब्बत की दुकान-आराई करता है
जौन एलिया
नज़्म
टक ग़ाफ़िल दिल में सोच ज़रा है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी बांदी दाई दवा क्या बंदा चेला नेक-चलन
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गोया फिर ख़्वाब से बेदार हुए दुश्मन-ए-जाँ
संग-ओ-फौलाद से ढाले हुए जन्नात-ए-गिराँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़्ज़ारों से उल्फ़त है
मिरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो फ़लसफ़े जो हर इक आस्ताँ के दुश्मन थे
अमल में आए तो ख़ुद वक़्फ़-ए-आस्ताँ निकले