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नज़्म
ज़मीं से आसमाँ तक सर्दियों का फ़ैज़ जारी है
कि इन ख़ामोश रातों में मुसलसल बर्फ़-बारी है
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
जीवन तो बहता दरिया है सुख दुख इस की मौजें
हम तुम दोनों मिल कर अपनी प्यार की मंज़िल खोजें
महमूद ज़की
नज़्म
वो अब्र-ए-मोहब्बत की दिलकश घटाएँ
'ज़की' अब कहाँ अहद-ए-रंगीं वो पाएँ
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
मुफ़लिसों का दहर में मुश्किल-कुशा कोई नहीं
ऐ 'ज़की' सच है ग़रीबों का ख़ुदा कोई नहीं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
दिए चारों तरफ़ हर जा फ़रोज़ाँ देखता हूँ मैं
नज़र पड़ती है जिस पर भी दरख़्शाँ देखता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
रिश्वतों की ज़िंदगी है चोर-बाज़ारी के साथ
चल रही है बे-ज़री अहकाम-ए-ज़रदारी के साथ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
उठाना हाथ प्यारे वाह-वा टुक देख लें हम भी
तुम्हारी मोतियों की और ज़री के तार की राखी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मयस्सर हैं ज़री के शामियाने ख़ुश-नसीबी को
ओढ़ा दी साया-ए-दीवार ने चादर ग़रीबी को
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
दरस-ए-सुकून-ओ-सब्र ब-ईं एहतिमाम-ए-नाज़
निश्तर-ज़नी-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए