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नज़्म
रात गए तक घाएल नग़्मे करते हैं एलान यहाँ
ये दुनिया है संग-दिलों की कोई नहीं इंसान यहाँ
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
साज़-ओ-सामान-ए-तरब सब कुछ तिरी महफ़िल में है
दर्द-ए-इंसानी का भी जल्वा किसी के दिल में है
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तू शनासा-ए-ख़राश-ए-उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं
ऐ गुल-ए-रंगीं तिरे पहलू में शायद दिल नहीं