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नज़्म
रगों से उलझती हुई साँस के साथ कस दें
उन्हें रात के सुरमई हाथ ख़ैरात में नींद कब दे सके हैं
मोहसिन नक़वी
नज़्म
वो जैसे फिर सुरमई उफ़ुक़ पर सितारे अल्फ़ाज़ के उभरना
ये ज़िंदगी से जो बे-नियाज़ी है किस लिए है
तारिक़ क़मर
नज़्म
सुरमई शाम के गेसुओं में बंधी बारिशें खोल दूँ ख़ुशबुएँ घोल दूँ
फूल के सुर्ख़ होंटों पे अफ़्शाँ रखूँ
तारिक़ क़मर
नज़्म
वो चूड़ियों की ताल पर भी कैफ़ था फ़ज़ाओं में
वो सुरमई सी शाम में किसी हसीन गाँव में