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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो पहली शब-ए-मह शब-ए-माह-ए-दो-नीम बन जाएगी
जिस तरह साज़-कोहना के तार-ए-शिकस्ता के दोनों सिरे
नून मीम राशिद
नज़्म
सबीलें अब भी नन्हे-मुन्ने हाथों से लगाते हैं
वो मिट्टी के घड़ों पर सुर्ख़ गाबिस मल के