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नज़्म
ख़्वाब की माँग में नूर सिंदूर की कहकशाँ खींच दूँ
इक तख़य्युल की बे-रब्तियों को तसलसुल की ज़ंजीर दूँ
तारिक़ क़मर
नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
नहा धो कर मैं अपनी माँग जब सिंदूर से भरती हूँ
तो जाने ज़ेर-ए-लब क्यूँ मुस्कुराते हैं मिरे साजन
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
माँग में झोंक दी सिंदूर की जगह तुम ने आग
शर्म से अब तो हुई जाती है गर्दन मिरी ख़म
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
सुहागन चूड़ियों को तोड़ कर इक बम में भर देना
और अपनी माँग के सिंदूर को बारूद कर लेना
कुंदन अरावली
नज़्म
मादर-ए-हिन्द के होंटों पे तबस्सुम होगा
और पेशानी पे सिंदूर का इक नुक़्ता-ए-सुर्ख़