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नज़्म
हिम्मत-ए-आली तो दरिया भी नहीं करती क़ुबूल
ग़ुंचा साँ ग़ाफ़िल तिरे दामन में शबनम कब तलक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिखा वो हुस्न-ए-आलम-सोज़ अपनी चश्म-ए-पुर-नम को
जो तड़पाता है परवाने को रुलवाता है शबनम को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़रा सी फिर रुबूबियत से शान-ए-बे-नियाज़ी ली
मलक से आजिज़ी उफ़्तादगी तक़दीर शबनम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
گريہ ساماں ميں کہ ميرے دل ميں ہے طوفان اشک
شبنم افشاں تو کہ بزم گل ميں ہو چرچا ترا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दूब की ख़ुश्बू में शबनम की नमी से इक सुरूर
चर्ख़ पर बादल ज़मीं पर तितलियाँ सर पर तुयूर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अक्सर रियाज़ करते हैं फूलों पे बाग़बाँ
है दिन की धूप रात की शबनम उन्हें गिराँ