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नज़्म
तुम्हारा नाम लेता हूँ
तो सदियों क़ब्ल के लाखों सहीफ़ों के मुक़द्दस लफ़्ज़ मेरा साथ देते हैं
रहमान फ़ारिस
नज़्म
मुझे मुस्कान का पहला सहीफ़ा याद है अब तक
कि दिल जिस की तिलावत से सकूँ के घूँट भरता था
बिलाल अहमद
नज़्म
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
किसी क़िर्तास पे खुलते नहीं रौशन लहजे
क्या उजालों के सहीफ़ों को मसीहा ने जिला डाला है
नवेद मालिक
नज़्म
उस मुक़द्दस बदन में जो घर कर गए हैं
इन अंधे सहीफ़ों से निकले हुए दूध के चंद क़तरे पियो
रियाज़ लतीफ़
नज़्म
'ज़ियाई' और 'नय्यर' के सिवा और नाम भी होंगे
मोहब्बत के सहीफ़ों में फ़क़त इन दो के आए हैं