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नज़्म
इस में ही लोग इश्क़-ओ-मोहब्बत के मारे हैं
इस में ही शोख़ हुस्न के चाँद और सितारे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पर तुझे इश्क़-ओ-मोहब्बत से कहाँ फ़ुर्सत है
मय-ए-गुल-रंग की ला'नत से कहाँ फ़ुर्सत है
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
गर तमन्ना है कि हो सारा ज़माना अपना
जज़्बा-ए-इश्क़-ओ-मुहब्बत की नज़र पैदा कर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
इक जहाँ जिस में न हो इश्क़-ओ-मोहब्बत को ज़वाल
हुस्न का गुलशन हो जिस में बे-ख़िज़ाँ मेरे लिए
जलील क़िदवई
नज़्म
आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ