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नज़्म
अहल-ए-दिल जो आज गोशा-गीर-ओ-सुर्मा-दर-गुलू
अब तना ता-हू भी ग़ाएब और या-रब हा भी गुम
नून मीम राशिद
नज़्म
टेलीविज़न भी नहीं ग़ाएब हुए हैं सारे खेल
डाल कर कोल्हू में बच्चों को निकालो उन का तेल
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ख़र्च का टोटल दिलों में चुटकियाँ लेता हुआ
फ़िक्र-ए-ज़ाती में ख़याल-ए-क़ौम ग़ाएब फ़िल-मज़ार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
कि सूरज जल रहा था रौशनी मंज़र से ग़ाएब थी
ख़ुदा ज़िंदा था लेकिन उस की रहमत सर से ग़ाएब थी
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
ग़ाएब-अज़-चश्म थी जन्नत की बहारों की तरह
दस्त-ए-इंसाँ से थी महफ़ूज़ सितारों की तरह
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जलते रहने से धुआँ बन के मिटा तेरा बदन
तू लगा मुँह को तो ग़ाएब हुई ख़ुशबू-ए-दहन