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नज़्म
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस में क्या शक है कि मोहकम है ये इबलीसी निज़ाम
पुख़्ता-तर इस से हुए ख़ू-ए-ग़ुलामी में अवाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये बात बात पे क़ानून ओ ज़ाब्ते की गिरफ़्त
ये ज़िल्लतें ये ग़ुलामी ये दौर-ए-मजबूरी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो तू समझे तो आज़ादी है पोशीदा मोहब्बत में
ग़ुलामी है असीर-ए-इम्तियाज़-ए-मा-ओ-तू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
اس ميں کيا شک ہے کہ محکم ہے يہ ابليسي نظام
پختہ تر اس سے ہوئے خوئے غلامي ميں عوام