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नज़्म
कहाँ तक क़िस्स-ए-आलाम-ए-फ़ुर्क़त मुख़्तसर ये है
यहाँ वो आ नहीं सकती वहाँ मैं जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हयात-ए-मुख़्तसर सब की बही जाती है और मैं भी
हर इक को देखता हूँ मुस्कुराता है कि हँसता है
मीराजी
नज़्म
किस से पूछें वबा और वफ़ा में बनाए हुए बे-तकल्लुफ़ त'अल्लुक़
की उम्रें अगर मुख़्तसर हैं तो क्यों हैं
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
और कुछ साए कि हैं मुख़्तसर ओ तीरा-ओ-तार,
तुझ को क्या इस से ग़रज़ है कि ख़ुदा है कि नहीं?
नून मीम राशिद
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
मैं जिंसी खेल को क्यूँ इक तन-आसानी समझता हूँ
कभी इंसाँ की उम्र-ए-मुख़्तसर पर ग़ौर करता हूँ
मीराजी
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दुनिया की उन ज़ोहरा-जबीनों से
हुई जिन से न मेरे शौक़-ए-रुस्वा की पज़ीराई