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नज़्म
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे
यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस शहर में बुत-कदे भी हैं और मस्जिदें भी तमाम
इंसान की फ़ितरत देख कर हुए हैं भगवान लापता
माधव अवाना
नज़्म
मस्जिदें भी हैं मनादिर भी हैं गिरिजा-घर भी
निकहत-ओ-नूर में डूबा हुआ हर मंज़र भी
अमीर अहमद ख़ुसरव
नज़्म
क्या मंदर मस्जिद ताल कुआँ क्या खेती बाड़ी फूल चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मैं ने तोड़ा मस्जिद-ओ-दैर-ओ-कलीसा का फ़ुसूँ
मैं ने नादारों को सिखलाया सबक़ तक़दीर का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जिस की दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिस की तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ