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नज़्म
ये सिवय्याँ जो बल खाती हुई मेदे में जाएँगी
सियासी गुत्थियों को और उलझाना सिखाएँगी
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
और वो सब आदर्श, वो सब जो वजह-ए-मलामत ठहरा था
इस मटियाले शख़्स के गहरे मेदे में खुप जाता है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये लताफ़त माद्दे का बार उठा सकती नहीं
शेर की इस्मत हवस की ताब ला सकती नहीं
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
तबस्सुम काश्मीरी
नज़्म
किसी सय्याल माद्दे का बहुत शफ़्फ़ाफ़ सा क़तरा
गिरा और खुब गया, इस ख़ाक के बे-लौस टुकड़े पर