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नज़्म
तेरी कोशिश से बना हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ
रास्ता तू ने दिखाया बन के मीर-ए-कारवाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
तेरी कोशिश से बना हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ
रास्ता तू ने दिखाया बन के मीर-ए-कारवाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
मज़हब-ए-इंसानियत का पासबाँ कोई न था
कारवाँ लाखों थे मीर-ए-कारवाँ कोई न था
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
निगाह को थी मगर मीर-ए-कारवाँ की तलाश
नज़र जो उट्ठी तो देखा कि एक मर्द-ए-फ़क़ीर
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मुंतख़ब हम ने किया था एक मीर-ए-कारवाँ
वो बढ़ा जिस सम्त हर पीर-ओ-जवाँ बढ़ता गया
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
जिस में शिरकत के लिए बे-ताब है सारा जहाँ
जश्न-ए-उर्दू का भी मीर-ए-कारवाँ संजीव है
अज़हर बख़्श अज़हर
नज़्म
ग़ाज़ियान-ए-जंग-ए-आज़ादी का सब लिक्खा बयाँ
फिर दिया पैग़ाम उन को थे जो मीर-ए-कारवाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मुक़ल्लिद जो नहीं इस का वो पहुँचेगा न मंज़िल पर
सर-ए-हर-जादा-ए-मंज़िल है मीर-ए-कारवाँ उर्दू
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
निकला हूँ ख़ुद को ढूँडने इस का मगर है मुझ को ग़म
राह-ए-जुनूँ दराज़ है मेरा सफ़र क़दम क़दम