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नज़्म
ये शाख़-सार के झूलों में पेंग पड़ते हुए
ये लाखों पत्तियों का नाचना ये रक़्स-ए-नबात
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
नारा-ज़न रहती है कोयल बाग़ के काशाने में
चश्म-ए-इंसाँ से निहाँ पत्तों के उज़्लत-ख़ाने में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कितने शराबी मुश्वरियों से नैन मिलाते गुज़री
चंद कसीली पत्तों की गुत्थी सुलझाते गुज़री
मजीद अमजद
नज़्म
हवा के लब बर्फ़ीले सुमों में नीले पड़ कर अपनी सदाएँ खो बैठे
पत्तों की बाँहों के सर बे-रंग हुए