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नज़्म
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
कहाँ गई वो नींद की, शराब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
वो मेरी रूह का मक़्सूद-ओ-फ़ख़्र-ए-मौजूदात
उसी के नूर से रौशन है जल्वा-गाह-ए-सिफ़ात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
पड़े हुए माँदगी के वक़्फ़े के मुंतज़िर हैं
कि मैं कभी कार-ज़ार-ए-हस्ती के शोर-ओ-ग़ुल से
राशिद आज़र
नज़्म
आप को मेरा मम्नून-ए-एहसान होना चाहिए
कि में आप के लिए एक ऐसा मुजर्रब नुस्ख़ा तज्वीज़ कर रहा हूँ
शौकत आबिदी
नज़्म
तिफ़्ली में आरज़ू थी किसी दिल में हम भी हों
इक रोज़ सोज़-ओ-साज़ की महफ़िल में हम भी हों