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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बरहम है ज़ुल्फ़-ए-कुफ़्र तो ईमाँ सर-निगूँ
वो फ़ख़्र-ए-कुफ्र ओ नाज़िश-ए-ईमाँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं हुआ भूका तो दूध अपना पिलाया बार बार
मुझ को सीने से लगा कर ही उसे मिलता क़रार
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
और कहा हद हो चुकी है कुफ़्र की इल्हाद की
एक दुनिया मुंतज़िर है आप के इरशाद की
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
तुम कुफ़्र के फ़तवे लाओगे हम हक़ की दलीलें लाएँगे
तुम अपनों को ठुकराओगे हम ग़ैरों को अपनाएँगे
रेहान अल्वी
नज़्म
हक़-परस्ती के तसव्वुर से हमेशा ख़ुश थे
कुफ़्र और शिर्क से बेज़ार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
जो मिरी बात समझता वो सुख़न-दाँ न मिला
कुफ़्र ओ इस्लाम की ख़ल्वत में भी जल्वत में भी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
मग़रिब-ओ-मशरिक़ की सारी बहस में तुम ना-उमीदी के सिवा क्या दे सके
ना-उमीदी कुफ़्र है
अंजुम आज़मी
नज़्म
बेवफ़ाई जिस ने की तुझ से यक़ीनन जो भी हो
ना-मुकम्मल उस का ईमाँ कुफ़्र उस के दिल में है