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नज़्म
उड़ा देहली से और उड़ कर मैं कलकत्ता में आ पहुँचा
थका-हारा हुआ साहिल पे जैसे नाख़ुदा पहुँचा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ये मक़्नातीस की दावत थी आहन कैसे रद करता
मैं कलकत्ता से रुख़्सत हो के सीधा कानपूर आया