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नज़्म
हल्की हल्की चाँदनी कैफ़ियत-ए-गुल-गश्त-ए-बाग़
वो लब-ए-जू आह हुस्न ओ इश्क़ के दो शब चराग़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
ख़ुदा से कर चुके हैं जो कलाम वो कलीम अपनी बाज़गश्त छोड़ के चले गए
और ख़ाक-ए-बाज़-गश्त आज
अहमद हमेश
नज़्म
ये समाँ है मैं हूँ और लाहौर का लारेंस बाग़
गश्त में हैं मग़रिबी तहज़ीब के चश्म-ओ-चराग़
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
अब उस की पुतलियों में सब्ज़ फ़सलें लहलहाती हैं
वो सोता है तो ख़्वाबों में कहीं गुल-गश्त करता है
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
नज़्म
अकेले फूल चुन लें बाग़ में तो ख़ैर चुन भी लें
मगर तन्हा प-ए-गुल-गश्त मैं जाऊँ न वो जाएँ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के