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नज़्म
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
अगरचे आज-कल कॉलेज में वाक़िफ़ हैं हमारे कम
हमें दीवार-ओ-दर पहचानते हैं और उन को हम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
आज-कल भूले हुए हैं सब इलेक्शन और डिबेट
प्रैक्टीकल की कापियों के आज-कल भरते हैं पेट