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नज़्म
उँगलियाँ उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
ये भी पोछेंगे कि तुम इतनी परेशाँ क्यूँ हो
उँगलियाँ उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
अभी फिर आग उट्ठेगी शिकस्ता साज़ से आख़िर
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कभी हँसती हुई आँखों में उस की झाँक कर देखो
तो लगता था छलक उट्ठेंगी पर इतना ही कहती थी
इशरत आफ़रीं
नज़्म
हर्फ़-ए-उल्फ़त से महक उट्ठेगी ख़ामोश सहर
ज़हर पीते थे जो शाइ'र वो ग़ज़ल-ख़्वाँ होंगे
इशरत मोईन सीमा
नज़्म
तुझ पे उट्ठी हैं वो खोई हुई साहिर आँखें
तुझ को मालूम है क्यूँ उम्र गँवा दी हम ने