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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मगर आज धरती से अम्बर के उस पार हद्द-ए-नज़र तक
ख़िरद की सुहानी सुहानी उड़ानों का पल बन चला है
तख़्त सिंह
नज़्म
मिरी मग़्मूम आँख के अफ़्लाक पर
अपनी दुम को हिला कर करूँ कब तलक आँख टेढ़ी उड़ानों को सीधी बता
रियाज़ लतीफ़
नज़्म
ज़ख़्म-ख़ुर्दा हैं तख़य्युल की उड़ानें तेरी
तेरे गीतों में तिरी रूह के ग़म पलते हैं