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नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरा रोना नहीं रोना है ये सारे गुलिस्ताँ का
वो गुल हूँ मैं ख़िज़ाँ हर गुल की है गोया ख़िज़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
झाड़ियाँ जिन के क़फ़स में क़ैद है आह-ए-ख़िज़ाँ
सब्ज़ कर देगी उन्हें बाद-ए-बहार-ए-जावेदाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सोचता हूँ कि मोहब्बत है जवानी की ख़िज़ाँ
उस ने देखा नहीं दुनिया में बहारों के सिवा
नून मीम राशिद
नज़्म
ये ज़ाबता है कहूँ दश्त को गुलिस्ताँ-ज़ार
ख़िज़ाँ के रूप को लिक्खूँ फ़रोग़-ए-हुस्न-ए-बहार
हबीब जालिब
नज़्म
अब भी ख़िज़ाँ का राज है लेकिन कहीं कहीं
गोशे रह-ए-चमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ हुए तो हैं