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नज़्म
हम पे ग़द्दारी की तोहमत ये नवाज़िश देखिए
देख लीजे ज़ह्र कितना उस रग-ए-बातिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
न होगी भूक की ला'नत न बेकारी न बीमारी
न होगी बे-ईमानी और न अय्यारी न ग़द्दारी
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
है फ़ितरत दुश्मनान-ए-दीन-ओ-ईमान-ओ-हक़ीक़त की
वतन से कर के ग़द्दारी मुलूकीय्यत से मिल जाना
टीका राम सुख़न
नज़्म
कि नफ़्इ-ए-ऐन-ए-ऐन ओ सर-ब-सर ज़िद्दीन हैं दोनों
Luis-Urbina ने मेरी अजब कुछ ग़म-गुसारी की
जौन एलिया
नज़्म
किया रिफ़अत की लज़्ज़त से न दिल को आश्ना तू ने
गुज़ारी उम्र पस्ती में मिसाल-ए-नक़्श-ए-पा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे ग़म-ख़्वार मिरे दोस्त तुम्हें क्या मालूम
ज़िंदगी मौत के मानिंद गुज़ारी मैं ने