aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "चार-सू"
चार सू इक उदास मंज़र हैज़ीस्त है जैसे एक वीराना
तुझ से रौशन है काएनात मिरीतेरे जल्वे हैं चार-सू अब भी
मिस्र में चार सू था हुक्म रवाँआँख थी जानिब-ए-वतन निगराँ
मेरे लबों पेबहार बहुत थी चार-सू बाग़ों में
गुलों की वादी लहू लहू हैफ़ुग़ाँ की आवाज़ चार-सू है
आबशार-ए-सुकूत जारी हैचार-सू बे-ख़ुदी सी तारी है
संदूक़ के चार सू रेंगती हैंसमुंदर की तह में!
ख़ुशबू से जिस की चार सूवो ज़ुल्फ़-ए-जानाँ बन गई
न साएबाँ मिले कहींपनाह चार-सू न हो
मस्तियाँ आबाद हैंचार-सू बिखरा पड़ा है सब्ज़ा-ज़ारों का हुजूम
चार-सू छाए हुए ज़ुल्मात को अब चीर जाओऔर इस हंगाम-बाद-आवर को
बिजलियों जैसा मुसफ़्फ़ा इक वजूदचार-सू बिखरे हुए ख़ामोश सूने आसमाँ
चार-सूज़ाफ़रानी रौशनी के दाएरे
लगा के चौक से और चार-सू तलक देखाकि जागह एक भी तिल धरने की नहीं है ज़रा
और फिर एक दमसिसकियाँ चार-सू थरथरा कर उठीं
ज़र्द पत्ते दहकने लगे चार सूफिर ज़मिस्ताँ की साँसों में
इजतिमाई सोच के अनमोल दीपचार-सू रौशन करो
रक़्स करता है समुंदर चार-सूइसी अम्बोह का हिस्सा नहीं हूँ मैं
देर तक उस नए आदमी की रही जुस्तुजूउस को आवाज़ देते रहे चार सू
यूँ तो रक़्साँ थीं चार-सू ख़ुशियाँरोते गुज़री है ईद मुफ़्लिस की
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