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नज़्म
बेटा कहता था कि मैं सरकारी अफ़सर हूँ जनाब
रोज़ा रक्खूँगा तो मुझ से माँगा जाएगा जवाब
दिलावर फ़िगार
नज़्म
इतनी गम्भीरी पे भी मर-मर के जीते हैं जनाब
सौ जतन करते हैं तो इक घूँट पीते हैं जनाब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ससुराल में हो शादी तो ख़र्चा हो कम जनाब
मैके में है तो ख़र्च ये करती हैं बे-हिसाब