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नज़्म
ऐ मिरे ख़्वाबों की मंज़िल ऐ मिरी जान-ए-वफ़ा
तू ने मेरे दिल पे जाने सेहर सा क्या कर दिया
परवाज़ नूरपुरी
नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तरक़्क़ियों की खोज में रवाँ दवाँ ये क़ाफ़िले
मिरे वतन की रूह हैं मिरे चमन की जान हैं
वफ़ा सिद्दीक़ी
नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गर इश्क़ किया है तब क्या है क्यूँ शाद नहीं आबाद नहीं
जो जान लिए बिन टल न सके ये ऐसी भी उफ़्ताद नहीं