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नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अपनी तनख़्वाहों के नाले में है पानी आध-पाव
और लाखों टन की भारी अपने जीवन की है नाव
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अब तक मेरे गीतों में उम्मीद भी थी पसपाई भी
मौत के क़दमों की आहट भी जीवन की अंगड़ाई भी