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नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
वो इज्ज़-ए-ग़ुरूर-ए-सुल्ताँ भी जिस के आगे झुक जाता था
वो मोम कि जिस से टकरा कर लोहे को पसीना आता था
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
मीराजी
नज़्म
नहीं तेशा तो सर टकरा के जू-ए-शीर लाएँगे
बयाबान-ए-जुनूँ में जानशीन-ए-कोहकन हम हैं