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नज़्म
फीका है जिस के सामने अक्स-ए-जमाल-ए-यार
अज़्म-ए-जवाँ को मैं ने वो ग़ाज़ा अता किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
निगाह को थी मगर मीर-ए-कारवाँ की तलाश
नज़र जो उट्ठी तो देखा कि एक मर्द-ए-फ़क़ीर
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
तलाश-ए-हुस्न-ओ-मुदावा-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के लिए
चुरा के लाए हैं दो-चार लम्हे दुनिया से
माहिर मरनसूर
नज़्म
जो चलता है तो क़दमों की कोई आहट नहीं होती
तलाश-ए-फ़र्क़-ए-नेक-ओ-बद की ख़्वाहिश को लिए दिल में
फ़ैसल हाशमी
नज़्म
चाँद और सूरज का हमदम हूँ फ़लक-पैमा हूँ मैं
आज तक महव-ए-तलाश-ए-फ़ितरत-ए-कुबरा हूँ मैं