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नज़्म
तुम्हारी अर्जुमंद अम्मी को मैं भूला बहुत दिन में
मैं उन की रंग की तस्कीन से निमटा बहुत दिन में
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ख़ुदारा शुक्र की तल्क़ीन अपने पास ही रक्खें
ये लगती है मिरे सीने पे बन कर तीर मौलाना
हबीब जालिब
नज़्म
मिरे चेहरे पे जब भी फ़िक्र के आसार पाए हैं
मुझे तस्कीन दी है मेरे अंदेशे मिटाए हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें 'मोमिन'-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले
रईस अमरोहवी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तड़प जाता हूँ मैं जब दिल ज़रा तस्कीन पाता है
उसी अंदाज़ से मुझ को सहारे याद आते हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
लेकिन आज अख़्लाक़ की तल्क़ीन फ़रमाते हो तुम
हो न हो अपने में अब क़ुव्वत नहीं पाते हो तुम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फिर दिल को पास-ए-ज़ब्त की तल्क़ीन कर चुकें
और इम्तिहान-ए-ज़ब्त से फिर जी चुराईं हम