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नज़्म
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
जहाँ इन बे-नवाओं का भी हमदर्द आसमाँ होता
जहाँ तस्कीन-ए-दिल होती जहाँ आराम-ए-जाँ होता
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
यूँ फ़ज़ाओं में रवाँ है ये सदा-ए-दिल-नशीं
ज़ेहन-ए-शाइर में हो जैसे इक अछूता सा ख़याल
इब्न-ए-सफ़ी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
दिल की न पूछो क्या कुछ चाहे दिल का तो फैला है दामन
गीत से गाल ग़ज़ल सी आँखें साअद-ए-सीमीं बर्ग-ए-दहन
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
चमकते हुए सब बुतों को मिटा दो
कि अब लौह-ए-दिल से हर इक नक़्श हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिट चुका है
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
नज़्म
ख़ून-ए-दिल देना पड़ा ख़ून-ए-जिगर देना पड़ा
अपने ख़्वाबों की हसीं परछाइयाँ देना पड़ीं