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नज़्म
तिलिस्म-ए-बाद-ओ-बाराँ में कोई तूफ़ाँ न होता
मोहब्बत ख़त्म हो जाने का भी इम्काँ न होता
ज़ीशान साहिल
नज़्म
किसी ने तोड़ डाला ये तिलिस्म-ए-कैफ़-ओ-ख़्वाब आख़िर
मिरी आँखों के आगे आए शमशीर ओ शबाब आख़िर
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
सुकून-ए-दीदा-ए-तिश्ना हैं मौजा-हा-ए-सराब
ख़ुदा करे कि न टूटे तिलिस्म-ए-लात-ओ-मनात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
आह ये दुनिया ये मातम-ख़ाना-ए-बरना-ओ-पीर
आदमी है किस तिलिस्म-ए-दोश-ओ-फ़र्दा में असीर