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नज़्म
तिरे फ़िराक़ में कैसे न दिल से हूक उठे
कि हम अज़िय्यत-ए-शाम-ए-अलम से वाक़िफ़ हैं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तिरे फ़िराक़ में कैसे न दिल से हूक उठे
कि हम अज़िय्यत-ए-शाम-ए-अलम से वाक़िफ़ हैं