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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये तारों की चमक में है न फूलों ही की ख़ुश्बू में
तिरी तस्वीर में जो दिलकशी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
ख़ाक में रौंदा हुआ चेहरा मगर इक दिलकशी
आँख में हल्का तबस्सुम, दिल में कोई टीस सी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
दिलकशी ख़त्म है फिर क्यूँ ये जहाँ बाक़ी है
ये जहाँ जिस में सब अतराफ़ तबाही के निशाँ