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नज़्म
ये बात अजीब सुनाते हो वो दुनिया से बे-आस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अन-पढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया
दुनिया-ए-इल्म-ओ-दानिश का रास्ता दिखाया
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
अपनी दुनिया-ए-तग-ओ-दौ अपनी किश्त-ए-ज़ीस्त पर
अब्र-ए-रहमत बन के मैं ख़ुद छा रहा हूँ आज-कल
मासूम शर्क़ी
नज़्म
हाँ अभी दुनिया-ए-ज़ब्त-ए-शौक़ का हूँ शहरयार
हाँ अभी तुझ पर नहीं मेरी तबाही का मदार