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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी बेनाम-ओ-निशाँ लम्हे में दिल चाहता है
दूरियाँ बस मिरी मुट्ठी में सिमट कर रह जाएँ
असअ'द बदायुनी
नज़्म
न तो बे-रुख़ी से यूँ पेश आ न तो बे-सबब मिरा दिल दुखा
बड़ी जान-लेवा हैं दूरियाँ मिरे पास आ मिरे पास आ
सदा अम्बालवी
नज़्म
तआ'क़ुब के इशारे बर्क़ बन कर कौंद जाते हैं
बदल जाती हैं राहें दूरियाँ बढ़ती ही रहती हैं
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
तआ'क़ुब के इशारे बर्क़ बन कर कौंद जाते हैं
बदल जाती हैं राहें दूरियाँ बढ़ती ही रहती हैं