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नज़्म
रहम ऐ नक़्क़ाद-ए-फ़न ये क्या सितम करता है तू
कोई नोक-ए-ख़ार से छूता है नब्ज़-ए-रंग-ओ-बू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
सीखना है लेकिन अब मय-ख़ाना-ए-तामीर में
जुम्बिश-ए-नब्ज़-ए-तमन्ना ओ ख़िराम-ए-दौर-ए-जाम
अर्श मलसियानी
नज़्म
दामन-ए-कोहसार से ठंडी हवा आने लगी
नब्ज़-ए-ख़स में ज़िंदगी का ख़ून दौड़ाने लगी
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
अल-अमाँ ऐ तेरे मसनूई तबस्सुम का फ़रेब
थरथरा उठती है जिस के ज़ोर से नब्ज़-ए-शकेब
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
ख़ून जिस का दौड़ता है नब्ज़-ए-इस्तिक़्लाल में
लोच भर देता है जो शहज़ादियों की चाल में
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रक़्स करती हैं इशारों पर मिरे मौत-ओ-हयात
देखती रहती हूँ मैं हर-वक़्त नब्ज़-ए-काएनात