aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नीम-पोशीदा"
लफ़्ज़ की छाँव मेंनीम की पत्तियों का सफ़र तल्ख़ सा
हुआ ख़ेमा-ज़न कारवान-ए-बहारइरम बन गया दामन-ए-कोह-सार
आतिश-ए-बे-सूद में मत कूद हो कर बे-ख़तरमत गँवा यूँ मुफ़्त में आज़ादी-ए-क़लब-ओ-जिगर
रात शोर रहता हैमुख़्तलिफ़ किताबों में
कुशादा शहर मेंपेचीदा गलियाँ हों न नाले हों
चश्म-ए-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहींतोहमत-ए-इश्क़-ए-पोशीदा काफ़ी नहीं
मैं कार-ए-जहाँ से नहीं आगाह वलेकिनअरबाब-ए-नज़र से नहीं पोशीदा कोई राज़
फ़लक के ज़ाविए जब जबनई तश्कील पाएँगे
कोई ऐसा शग़्ल तो हो ज़ीस्त करने काजिसे वाजिब सा कोई नाम दे दें
मुझेएक लड़की ने
मुतहर्रिक मशीनेंसाँस लेते हुए
इक हयूला मिरे एहसास में पोशीदा हैगाहे-गाहे जो उभर आता है शैताँ बन कर
होंटों से कमगर्म महकती साँसों से
कह भी दे अब वो सब बातेंजो दिल में पोशीदा हैं
मैंसाल-हा-साल से
ज़ेहन पर छाई है बे-सूद ख़यालों की घटाफिक्र-ओ-एहसास का हर गोशा है महरूम-ए-ज़िया
दीवार-ए-जुनूँ से लग कर रोनाअपना ही नौहा दर-ओ-दीवार से कहना
जब मैं पहली मोहब्बत में थाउन दिनों
मैं ने पूछामुन्ने! तुम क्यूँ अपनी अम्मी जान को बाजी कहते हो
काग़ज़ पे फैले रंगों कीबे-रब्त लकीरों में ढूँडो
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