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नज़्म
मैं एक बेकल सा आदमी हूँ बहुत ही बोझल सा आदमी हूँ
समझ रही है ये दुनिया मुझ को मैं एक पागल सा आदमी हूँ
तारिक़ क़मर
नज़्म
कोई गहरी बात थी जी में जिसे वो कह भी न सकती थी
ऐसी चुप और पागल आँखें दमक रही थीं शिद्दत से