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नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
कोई गहरी बात थी जी में जिसे वो कह भी न सकती थी
ऐसी चुप और पागल आँखें दमक रही थीं शिद्दत से
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कोई गहरी बात थी जी में जिसे वो कह भी न सकती थी
ऐसी चुप और पागल आँखें दमक रही थीं शिद्दत से